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कहां जाना है?

एक राजा ने अपने मंत्री को एक छड़ी दी और कहा कि राज्य भर में घूमकर निरीक्षण करो तथा ऐसे व्यक्ति की खोज करो जो सबसे बड़ा मूर्ख हो। और जहां भी तुम्हें ऐसा मूर्ख व्यक्ति दिखायी दे, उसे ही यह छड़ी थमा देना।

मंत्री ने कहा- ठीक है। मंत्री बड़ा बुद्घिमान आदमी था। वह किसी भी बात पर बड़ी बारीकी से विचार करता था। गहन-मनन और चिंतन के बाद ही कोई निर्णय लेता था। उसने छड़ी को अपने घर में ले जाकर रख दिया।

काफी समय बीत गया। इधर राजा भी अपने राज्य के कार्यों में इस तरह व्यस्त हो गया कि उसे याद ही नहीं रहा कि उसने मंत्री से कोई सवाल पूछा है या उसे कोई कार्य सौंपा है।

एक समय राजा बहुत जोर से बीमार पड़ा। स्थिति बड़ी खराब थी। उस राजा को यह लगने लगा कि अब उसकी मौत बिलकुल नजदीक है। अत: उसने अपने सभी रिश्तेदारों, मित्रों और कुटुम्बियों से मिलने की इच्छा प्रकट की, जैसा कि प्रत्येक मनुष्य के साथ होता है।

जीवन के अंतिम क्षणों में किसी को वही याद आता है जो उसे सबसे अधिक प्रिय हो। इसीलिए अधिकांशत: ऐसा देखा जाता है कि जब कोई व्यक्ति बिलकुल मरने के करीब हो तो लोग उसके लडक़े, लड़कियों, दामाद, भाई या अन्य नजदीकी रिश्तेदारों को शीघ्रातिशीघ्र फोन-टेलिग्राम अन्य साधनों द्वारा खबर कर देते हैं ताकि वे संबंधित व्यक्ति से मिल सके। कुछ लोग तो औपचारिकता के तौर पर भी उसे देखने जाते हैं।

यह तो एक सामान्य व्यक्ति के साथ भी लागू होता है। वह तो राजा था। अत: उससे मिलने वालों की संख्या अधिक थी। सभी मंत्रीगण, सेनापति, रानियां व अन्य नजदीकी राजदरबारी लोग आये। राजा पलंग पर मरणासन्न स्थिति में पड़ा हुआ था। मिलने वाले लोग चारों तरफ से उसे घेरे खड़े थे। तभी अचानक राजा की आंखें खुलीं। उसने अपने चारों तरफ खड़े सभी लोगों से नम्रतापूर्वक बोला कि मेरे जीवन में, मेरे व्यवहार से यदि किसी को कोई कष्टï पहुंचा हो तो माफ करना, अब तो मैं जा रहा हूं।

इतना सुनते ही उसका मंत्री नजदीक आया और कहा- महाराज, आप कहां जा रहें हैं? कल तो आपने मुझे किसी यात्रा के बारे में सूचित नहीं किया जबकि हमेशा किसी भी मंत्रणा में आप मुझसे भी विचार-विमर्श या परामर्श कर लेते थे। लेकिन आपने अचानक आज कहीं जाने का निर्णय कैसे ले लिया? खैर, मैं तो आपका गुलाम हूं। मुझे तो यह भी पूछने का अधिकार नहीं है कि आपको कहां जाना है या आपकी क्या योजनाएं हैं? लेकिन हुक्म किया जाय कि किन-किन चीजों की व्यवस्था कर दी जाय? उस यात्रा में कितनी सेनाएं चलेंगी? कौन-कौन मंत्रीगण चलेंगे? आप किन-किन रानियों को ले जाना पसंद करेंगे? हीरे जवाहिरात की कितनी गाडिय़ां तैयार कर दी जाय तथा खाने-पीने की कितनी सामग्रियां ले चलनी हंै? कृपया, हमें बता दें ताकि उस सूची के आधार पर जल्द से जल्द तैयारी की जा सके।

राजा ने कहा कि किसी चीज की तैयारी की जरूरत नहीं है। इस यात्रा में कोई भी चीज साथ नहीं ले जायी जा सकती।

तब मंत्री ने पूछा- यह कैसी यात्रा है जिसमें कोई चीज नहीं ले जा सकते? आज तक तो आप ऐसी किसी भी यात्रा में नहीं गये जिसमें कुछ भी साथ नहीं ले गये हों। मैं भी आपके साथ चलता था। सेनाएं भी चलती थी। गाजे-बाजे के साथ आपकी विदाई होती थी। परंतु यह कैसी यात्रा है?

तब राजा ने कहा- यह मेरी अंतिम यात्रा है। मैं हमेशा-हमेशा के लिए इस दुनिया से जा रहा हूं।

मंत्री ने पुन: निवेदन करते हुए कहा कि फिर तो और अच्छी बात है। क्योंकि जब आप थोड़े दिन की यात्रा में जाते थे तो थोड़ा सामान ले जाते थे। लेकिन जब आप हमेशा-हमेशा के लिए जा रहे हैं तो फिर तो सारी चीजें ले जानी चाहिए, क्योंकि दुबारा तो फिर आना नहीं है। आपने जीवन भर मेहनत करके इतनी चीजों को इक_ïा किया है। राज्य स्थापित किया है, नाते रिश्तेदार बनाये हैं। इतनी कठिनाइयों के बावजूद प्राप्त इन चीजों को क्यों छोड़ रहे हैं?

ये बातें सुनकर राजा की आंखों में आंसू आ गये। गला भर आया। कुछ देर सोचकर फिर बोला कि यही तो मजबूरी है मंत्री जी! कि मैं चाहते हुए भी इन चीजों में से कुछ नहीं ले जा सकता। प्रकृति का ऐसा नियम है कि इस संसार से जाते समय कोई भी अपने साथ कुछ नहीं ले जा सकता। इस संसार में एक तिनका पर भी किसी का कोई अधिकार नहीं है। इस संसार में अपना कुछ नहीं है। धन, दौलत, नाते-रिश्तेदार की कौन कहे, यहां तक कि यह शरीर भी अपना नहीं है, जिसमें मैं इतने सालों तक रहा हूं। इस शरीर को भी मुझे यहीं छोड़ देना पड़ेगा।

इतनी बात सुनते ही मंत्री दौड़ा-दौड़ा घर आया और वह छड़ी लाकर राजा को देने लगा और कहा कि महाराज इस छड़ी को तो आप ही पकडिय़े।

राजा तो भूल गया था, उसने पूछा- यह कैसी छड़ी है? मंत्री ने कहा कि पहले आप इसे पकडिय़े तब मैं आपको बतलाऊंगा। राजा ने वह छड़ी पकड़ ली।

तब मंत्री ने राजा को याद दिलाते हुए कहा कि महाराज! यह वही छड़ी है- जो आपने लगभग छह महीने पहले ऐसे व्यक्ति को ढूंढ़ कर देने के लिए कहा था, जो सबसे बड़ा मूर्ख हो। तो मैं कहां जाऊं ढूंढऩे के लिए? मुझे आप जैसा तो कोई दिखलायी नहीं दिया।

राजा ने पूछा- कैसे?

तब मंत्री ने कहा कि आप को यह मालूम था कि इस संसार में कुछ भी अपना नहीं है। यह शरीर भी अपना नहीं, यह राज्य, नाते-रिश्तेदार, धन-दौलत यहां तक कि एक तिनका भी अपना नहीं। फिर भी सारे जीवन भर आप यही कहते थे कि यह मेरा है, वह मेरा है। हाय मेरा पुत्र, हाय मेरी पुत्री, मेरी रानियां, मेरी प्रजा, मेरा राज-पाट। मेरा-मेरा। सारी जिंदगीभर मेरा-मेरा कहते रहे। तो जो चीज अपनी न हो उसका अपना समझना क्या मूर्खता नहीं है? राजा निरूत्तर हो कर शांत हो गया।