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आंतरिक प्रेरणा तुम धन्य हो

हे प्रेरणा! कबीर के सतनाम, रविदास के सद्ïज्ञान तथा मीरा के पावन प्रिय नाम की सच्ची प्रिय मूति, अज्ञानान्धकार में ज्ञानालोक बिखेरने वाली, निराशा में आशा की किरण और विनाश में विकास का सृजन करने वाली प्रेरणा तूने कमाल कर दिया।

तू मानव मंदिर की चौपहली, सजीली गली से सटे, सुख-शांति सरोवर के किनारे, जहां स्वच्छ अमीय धारा बहती है, वहां की निवासिनी तुम हो, तुम्हीं से कोई मानव अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ सकता है।

प्रेरणा मानव के नश-नश में समाई अहर्निश, एकरस, सतत्ï जागृत, अंत: स्रोत है, जो हमारी यत्ïयथा-तत्ïतथा की स्थिति में संरक्षिका व मार्ग निर्देशिका है। वह भ्रम में पड़े हुए मानव की आस्था रूपी नाव को निराशा के सागर में डूबने से बचा लेने वाली तीव्र गति वाली हवा है।

महात्मा बुद्घ की स्थिति से मिलान करके देखना चाहिए। पुत्र जन्मोत्सव के अवसर पर जहां राजकीय सजीले बहुमंजिलें महल की रंगीली, चहल-पहल की रात्रि में मंगल के गीत के मधुर स्वर, राज कुमार सिद्घार्थ के लिए अमांगलिक, अवास्तविक एवं हृदय विदारक माया जाल के विषय विष के समान असर कर रहे थे, वहीं उनकी आंखों में अश्रुधार छलक रहे थे, उनके हृदय में एक ऐसी ललक ललकार रही थी कि वे चुप-चाप दिल से बहुत दूर-सुदूर देशों की धुल छानने को निकल पड़े। राग-रंग का मोह भंग हो गया, मोह रूपी भांग का नशा उतर गया। उन्होंने आंतरिक प्रेरणा का सहारा लिया तथा निश्चय किया कि अब तक यह जीवन व्यर्थ गंवाया तो गंवाया, पर अब नहीं गंवायेंगे। वे सत्य की खोज में निकल पड़े। आज महात्मा बुद्घ अमर हैं, पर उनका सारा राज व सात-बाज सदा के लिए अदृश्य हो गया।

महात्मा ईशु को जीवन की वास्तविकता का पता बड़े सबेरे ही लगा, तब वे अपने परमेश्वर की महिमा गलियों, विभिन्न स्थलों में, बागों में सुनाने लगे। भवभय के विषैले वायुवेग ने उन्हें जीवन-मरण की कसौटी पर लाकर खड़ा कर दिया। असत्य के आवरण से सत्य ढका जा रहा हथा, सत्य-सूर्य अस्त होने को चलने लगा, उन्हें लोहे के कील ठोके जाने लगे, भवभय रोग ने सब कुछ कर गुजारा। पर उनकी चर्चा जगमगाती हुई प्रेरणा जिसने भीतर ही भीतर कमाल कर दिया। लहू की धारा शरीर को रंग रही थी, पर इस रंग का फाग मुस्कुराहट के प्रेम-भाव से चमकता उनका मुख मंडल आनंद बिखेर, मस्ती मनाये जा रहा था। प्रेरणा माया के पर्दा को अनावरित कर रही थी। ईशा मसीह सच्चाई का संदेश अप्रत्यक्ष रूप से आज भी दे रहे हैं, पर उन लोहे के कठोर कीलों का अस्तित्व नहीं है।

महाभारत के नायक अर्जुन जब लड़ाई के प्रारंभ होने से पहले कृष्ण की मदद लेने जा रहे थे, तो उनकी अन्तप्रेरणा ने ही उनका मार्ग दर्शन किया कि अर्जुन को पांव की तरफ बैठना चाहिए। प्रेरणा ने महाभारत में श्री कृष्ण से अर्जुन का रथ तक हंकवा दिया और उन्हीं ने अर्जुन की अज्ञानता तथा मोह का आवरण हटाकर, दिव्य दर्शन करवाया तथा अर्जुन को जीवन की वास्तविकता राह पर खड़ा कर दिया।

पवित्र मन की प्रेरणा। तुम धन्य हो। तुम्हारा गतिरोध कौन कर सकता है? राम-भक्त हनुमान के हृदय में समायी प्रेरणा की करामात किससे छिपा हुआ है? समुद्र को पार कर लंका में प्रवेश करने वाला, रावण के अभिमान का सही निदान देने वाला एवं माता सीता का पता लगाने वाला हनुमान ने अंत: प्रेरणा की गति को भलि भांति जान ली थी। प्रभु श्री राम की पावनी कृपा ने प्रेरणा पुंज का भंडार ऐसा भरा कि राम को हर समय उनके रोम-रोम में समाना पड़ा।

संत-शिरोमणि तुलसीदास की पावन, प्रिय प्रेरणामयी पत्नी ने तीखी फटकार में भव रोग विनाशी ऐसी दवा चखाई कि उन्हें होश में ला दिया। अब लौं नशानी अब ना नसैहों का वादा उन्होंने निभाकर प्रेरणा की प्रतिमूर्ति सद्ïगुरु की परम पावन कृपा का संदेश पाया और उसे रामायण के पन्नों में अमीय कणों से विभोर कर भक्ति की मणि-माणिक में अपने चित्त रूपी धागे को एकाार कर दिया।

हे परम रम्ये, हर मानव के अंत: करण में बसी हुई प्रिय प्रेरणा! तुम दु:ख में, सुख में, भय में, आनंद में, शांति में, आतंक में, सदा हाथ पकड़े की लाज बचाने वाली जीवन ज्योति तुम धन्य हो। तू की गति हो, तू ही लय हो एवं तू ही मानव जीवन में सच्चा सहायक हो।